Sunday, July 31, 2011

Kuch dil se

नयी दौर की नयी रीती ने , मुझको उलझा कर रखा है ...
जितना भी सुलझाऊं इसको , उतना ही उलझता जाता है ...
इस उधेरबुन दुनिया में , मतवाले यार कम मिलते है ...
इस तेज रफ़्तार वाली घडी में ,हम ठहाके खोते जाते है ...

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