Saturday, August 15, 2009

Happy Independence Day

आज मै आपके सामने एक कविता पेश कर रहा हूँ , जिसे मैंने अपने स्कूल के दिनों में पढ़ा था और मुझे बहुत ये प्रिया लगा था । आज भी ये कविता मेरे कुछ सबसे अनमोल धरोहरों में से एक है ....


जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है ।
ग्रीक हून शक यवन टूटते थे भूमि पर ,
हारते थे हौसले पंचनद के तीर पर ।
पता नही कहाँ है वे , अतीत में समां गए ,
कल के प्रवाह में नीज को वे मिटा गए ।
भव्य दिव्य लक्ष्य की प्राप्ति ही विराम है ,
अनादी है अनंत है श्रृष्टि का विधान है ।
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
छोड़ के हटे जहाँ शक्ति शौर्य साधना ,
छा गई स्वदेश में स्वार्थ क्षुद्र भावना ।
द्रोही तब पनप उठे , जगी प्रचंड वासना ,
शत्रु फ़िर डटे यहाँ स्वत्व की प्रताड़ना ।
देश भक्ति फ़िर जगे , देश का ये प्राण है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
जाति वेश भिन्न भिन्न , पंथ भी अनेक है ,
भावना अभिन्न है , धर्मं मर्म एक है ।
पूर्वजो का रक्त एक , आज सबको जोड़ता ,
कौन है कपूत वहाँ , देश को जो तोड़ता ।
अखंड देश की धरा सुना रहे ये गान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
अधर्म की घिरी घटा , कुचक्र है पनप रहे ,
पुण्य धर्मं भूमि पर अधर्म करमा बढ़ रहे ।
व्यथा विशाल देश की आज हम समझ सके,
विशुद्ध राष्ट्र भाव से देश ये महक उठे ।
राष्ट्र जागरण करो यही समय की मांग है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ,
अनादी है अनंत है , श्रृष्टि का विधान है

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